हमको तो आदत है
अपनों से चोट खाने की
दिल लगा कर
दिल्लगी
बर्दाश्त करने की
कई बार सहा है
इक बार फिर सह लेंगे
गिला
शिकवा किसी से नहीं
किस्मत में हमारी
सुकून ही नहीं
वो शख्श
अभी मिला ही नहीं
जो समझ सके हमको
खुल कर हँसा सके
हमको
11-02-2012
147-58-02-12
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