खुशी का लम्हा लम्हा
वक़्त के समंदर में
डूब गया
यादों का रेगिस्तान
बाकी रह गया
हर अपना वादे से
मुकर गया
मुझे अकेला छोड़ गया
ज़िन्दगी में सब कुछ
ठहर गया
उम्मीद का चाँद भी
ग़मों के बादलों खो गया
फलक पर कोई तारा भी
टिमटिमाता नहीं
दिखता
जो एक कतरा भी
उम्मीद का बंधाये मुझे
रह गया अब आसरा
सिर्फ खुदा का
पहले भी कई बार
उसने ही निकाली
किश्ती तूफान से
इस बार भी वो ही
निकालेगा
खुशी के कुछ पल तो
लौटाएगा
सुकून का अहसास तो
कराएगा
25-02-2012
248-159-02-12
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