आज वो
हमें मनाने आये हैं
अपनी बेवफाई की
वजह बताने आये हैं
ज़ख्मों पर
मरहम लगाने आये हैं
समझते हैं
हम उनकी बातों में
आ जायेंगे
अश्क पोंछ कर उनकी
बाहों में झूल जायेंगे
भूल गए
पहले भी कई बार
वादे किये थे हमसे
हर बार रोता छोड़ गए
हमने भी
तय कर लिया अब
उन्ही के
तीर से उन्हें मारेंगे
हँस कर कह देंगे
थोड़ी सी देर से आये हैं
हम उनके रकीब को
हाँ कर चुके हैं
21-02-2012
212-123-02-12
रकीब = दुश्मन
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