ना ग़मों से दुश्मनी
ना सुकून से दोस्ती
यही क्या कम है
ज़िंदा हूँ अब तक
कलम मेरी
अब भी रोशन
लिखती है सच
कहती है बात मन की
बताती है
फितरत लोगों की
दिखाती है
हकीकत रिश्तों की
कैसे किसी को पसंद
ना सुकून से दोस्ती
यही क्या कम है
ज़िंदा हूँ अब तक
कलम मेरी
अब भी रोशन
लिखती है सच
कहती है बात मन की
बताती है
फितरत लोगों की
दिखाती है
हकीकत रिश्तों की
कैसे किसी को पसंद
आऊँगा?
कैसे मिलेगा सुकून?
दोस्ती ग़मों से
दोस्ती ग़मों से
ही होगी
गर लिखूंगा सच सच
गर लिखूंगा सच सच
11-02-2012
154-65-02-12
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