Thursday, February 23, 2012

क्षणिकाएं -16


जीना
सोचता रहता हूँ
जो मन कहता
लिखता रहता हूँ
निरंतर
इसी तरह जीता
जाता हूँ
फर्क
नींद खुल गयी
सपना टूट गया
क्या फर्क पडा
वैसे भी टूटता
चुपचाप
या तो हँसो
या मुस्काराओ
रोओ मत
चुपचाप सहते रहो
बोलो मत
अच्छा-बुरा
कौन अच्छा ?
कौन बुरा ?
उम्र गुजर गयी
अभी तक तो
पता नहीं चला
दोहे
जब छोटे
दोहे कहते हैं बड़ी बातें
तो क्यों लिखूं लम्बी
 कवितायें
डर
डरनेवालों को
डराते हैं लोग
हिम्मत
रखने वालों से
घबराते हैं लोग
23-02-2012
231-142-02-12

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