Monday, February 27, 2012

मदहोशी

बगीचे में
 अकेली बैठी थी
आँखों में बेचैनी
चेहरे पर
उम्मीद की लकीरें
दिल की धड़कन
तेज़ हो रही थी
ख्यालों में 
डूबी हुयी थी
निगाहें
आसमान की तरफ
देख रही थी 
शायद खुदा से दुआ
कर रही थी
बहुत 
इम्तहान ले लिया
कब तक तडपाओगे
अब तो उसे भेज दे
उसे पता नहीं था
वो भी ख्यालों में डूबा
बगीचे के दरवाज़े पर 
उसकी ख़ूबसूरती देख
मदहोश हो गया था
खडा का 
खडा रह गया
आज उनकी पहली
मुलाक़ात होनी थी
27-02-2012
257-168-02-12

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