बगीचे में
अकेली बैठी थी
आँखों में बेचैनी
चेहरे पर
उम्मीद की लकीरें
दिल की धड़कन
तेज़ हो रही थी
ख्यालों में
डूबी हुयी थी
निगाहें
आसमान की तरफ
देख रही थी
शायद खुदा से दुआ
कर रही थी
बहुत
इम्तहान ले लिया
इम्तहान ले लिया
कब तक तडपाओगे
अब तो उसे भेज दे
उसे पता नहीं था
वो भी ख्यालों में डूबा
बगीचे के दरवाज़े पर
उसकी ख़ूबसूरती देख
मदहोश हो गया था
खडा का
खडा रह गया
खडा रह गया
आज उनकी पहली
मुलाक़ात होनी थी
27-02-2012
257-168-02-12
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