जब तक
मंझधार में थे
वो किनारे खड़े
इंतज़ार करते रहे
सलामती की दुआ
करते रहे
इशारे से अपने पास
बुलाते रहे
हम किसी तरह
किनारे पहुंचे
वो चले गए
जाते जाते मुड़ कर
भी ना देखा हमें
फिर से हमें ग़मों के
समंदर में डुबो गए
हम समझ नहीं पाए
वो मसीहा थे या
हैवान थे ?
21-02-2012
209-120-02-12
No comments:
Post a Comment