हमें खुशी है की वो
बुलंदी पर है
मगर अफ़सोस कि
मगर अफ़सोस कि
नज़रें आसमान पर
अब तक सफ़र में
अब तक सफ़र में
साथ थे
अब देखते भी नहीं
कभी हाथ में हाथ डाल
अब देखते भी नहीं
कभी हाथ में हाथ डाल
चलते थे
हर मुश्किल में सहारा
हर मुश्किल में सहारा
मांगते थे
अब हमारी ज़रुरत नहीं
क्यों भूलते कभी
अब हमारी ज़रुरत नहीं
क्यों भूलते कभी
बुलंदी से नीचे भी
उतरना पड़ता
उन्ही लोगों के बीच
उन्ही लोगों के बीच
रहना होता
कोई ना पहचानेगा उन्हें
निरंतर यह भी याद
कोई ना पहचानेगा उन्हें
निरंतर यह भी याद
रखना होता
वक़्त हमेशा इक सार
वक़्त हमेशा इक सार
नहीं रहता
15-05-2011
859-66-05-11
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