Sunday, May 15, 2011

कोई ना पहचानेगा उन्हें

हमें खुशी है की वो
बुलंदी पर है
मगर अफ़सोस कि
नज़रें आसमान पर
अब तक सफ़र में
साथ थे
अब देखते भी नहीं
कभी हाथ में हाथ डाल
चलते थे
हर मुश्किल में सहारा
मांगते थे
अब हमारी ज़रुरत नहीं
क्यों भूलते कभी
बुलंदी से नीचे भी
उतरना पड़ता
उन्ही लोगों के बीच
रहना होता
कोई ना पहचानेगा उन्हें
निरंतर यह भी याद
रखना होता
वक़्त हमेशा इक सार
नहीं रहता 
15-05-2011
859-66-05-11

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