जब भी
शहर से घर जाता हूँ
माँ से लिपट जाता हूँ
कौन बैठा है ?
कौन देख रहा है?
सब भूल जाता हूँ
बच्चे की तरह गोद में
मुंह छिपाता हूँ
माँ सर पर हाथ फिराती
आँखों से
आंसूं की बूँदें ढलकाती
कैसा है ?
मुझ से पूछती
बिलकुल ठीक हूँ
जवाब देता तो हूँ
मगर माँ आजकल
ऊंचा सुनती
सो अपनी धुन में
निरंतर
चिंता जताती रहती
कमजोर हो गया है
ठीक से खाया कर
जल्दी आया कर
शहर में क्या रखा है
मेरी छोड़
अपना ध्यान रखा कर
कह कर प्यार ऊँडेलती
अपने
हाथ से मेरे लिए
पसंद का भोजन बनाती
मन करता
फिर से बच्चा बन
जाऊं
माँ के पास ही
रह जाऊं
26-05-2011
937-144-05-11
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