आते देख
मन ही मन खुश
हुयी
अस्सी की उम्र
लगती थी
सहारे के लिए
हाथ में लकड़ी थी
बाल सफ़ेद
नज़र का चश्मा
लगाए
धीरे धीरे
चल रहा था
उसे देख
खुद से कहने लगी
किसी और काम से
आया होगा ?
कुछ समय तो शांती से
बीतेगा
निरंतर हवस का
शिकार होने से
कुछ पल तो बचेगी
वो आया,
भूखे शेर सा टूट पडा
शरीर को नोचने लगा
उसे पता नहीं था
हवस की कोई उम्र
नहीं होती
हवस इंसान के जहन में
बसती
इंसान की फितरत
चेहरे से नहीं दिखती
21-05-2011
903-110-05-11
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