अब उनका हर ख़त
जला देता हूँ
उसमें लिखे हर लफ्ज़ को
ज़हन में लिख देता हूँ
मोहब्बत के हर इज़हार को
दिल में ज़ज्ब करता हूँ
उनके अक्स को
खुद के चेहरे में मिलाता हूँ
उम्मीद में रहता हूँ
जब भी शीशा देखूं
निरंतर वो ही नज़र आयें
ख्यालों में
उनके खतों में लिखे
लफ्ज़ ही रह जाएँ
दिल से
उनकी मोहब्बत के
सिवा सब मिट जाए
12-05-2011
845-52-05-11
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