बगीचे में
कई फूल खिले थे
खूबसूरत
खूबसूरत
रंग और महक से
भरे थे
आँखों को निरंतर
आँखों को निरंतर
लुभाते
बगीचे में जब भी
बगीचे में जब भी
बैठता
सुकून नहीं मिलता
कुछ ना कुछ खालीपन
कुछ ना कुछ खालीपन
लगता
खूबसूरत माहौल में भी
खूबसूरत माहौल में भी
मन असंतुष्ट रहता
विचारों का मंथन किया
कारण पता ना चला
तभी ख्याल आया
विचारों का मंथन किया
कारण पता ना चला
तभी ख्याल आया
खुद से सवाल किया
कहीं गरूर तो बीच में
कहीं गरूर तो बीच में
नहीं आता ?
संतुष्टी से दूर रखता
संतुष्टी से दूर रखता
अपनों से दूर करता
आखिर प्रश्न का उत्तर
आखिर प्रश्न का उत्तर
मिल गया
ज्यादा पाने की
ज्यादा पाने की
इच्छा और गरूर ने
असंतुष्ट बना दिया
20-05-2011
असंतुष्ट बना दिया
20-05-2011
894-101-05-11
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