आओ तुम्हें
प्रेम गीत सुनाऊँ
मन की बात बताऊँ
जो आग लगी है दिल में
उसे बातों से बुझाऊँ
प्रेम गीतों से
मिलने की आस
जगाऊँ
विरह को भूल जाऊं
निरंतर प्रियतमा को
याद करता रहूँ
घावों पर मलहम
लगाता रहूँ
बेबस
समय काटता रहूँ
खुद को समझाता रहूँ
उम्मीद में जीता रहूँ
प्रेम गीत सुनाऊँ
30-05-2011
963-170-05-11
No comments:
Post a Comment