Friday, May 20, 2011

उलझन

पता ना था
ज़िन्दगी उलझन का
दूसरा नाम है
जितना सुलझाओ
उतने उलझते जाओ
निरंतर
पहेली खेलते जाओ
पसीना भी आता
आनंद भी आता
पहेली सुलझाना
ख़त्म ना होता
जीवन निरंतर
चलता रहता
20-05-2011
896-103-05-11 

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