लिखी थी
चैन,सुख की
कुछ पंक्तियाँ
मेरे
हाथों की लकीरों में
क्यूं फिर
उसे पाने के लिए
लड़ता रहा ?
किस्मत के खेल को
निरंतर उलटने की
कोशिश करता रहा
क्यूं ना हालात को
खुले दिल से
स्वीकार करूँ
कर्म करता रहूँ
ध्यान
प्रभु में लगाता रहूँ
हंसने की कोशिश
करता रहूँ
जीवन जीता रहूँ
11-05-2011
840-47-05-11
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