गरज
गरज कर बरसे बादल
पानी की बौछार करी
धूप को चीरा बूंदों ने
इन्द्रधनुष की छटा बिखेरी
वृक्षों को नहलाया जम कर
प्यासी धरती की प्यास
बुझाई
बालक, बूढ़े वर्षा में
नहाए
किसानों के चेहरे खिले
बीज खेतों में रोपेंगे
फसल नयी लगायेंगे
भूखे पेट आशा से भरे
नदी,तालाब जीवित हुए
निरंतर उदास चेहरे
खुशी से मतवाले हुए
हवा के ठन्डे झोंके चले
मोर नृत्य में मस्त हुए
पक्षी कलरव करने लगे
प्रतीत हो रहा मानो
मरघट फूलों से महका
मौत के क्रंदन के बाद
हंसने का अवसर मिला
11-05-2011
835-42-05-11
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