झील सी गहरी
नीली आँखों ने
सम्मोहित कर दिया
नज़र के तीरों ने
दिल को घायल
कर दिया
जुबान से लब्ज ना
निकला
जहन ने सोचना बंद
किया
खुली आँखों से निरंतर
उन्हें देखता रहा
तुम्हें चाहती हूँ
हौले से आवाज़ उनकी
आयी
मैंने भी हाँ,में गर्दन
हिलाई
वो आगे आगे
मैं पीछे पीछे चलने
लगा
कहाँ ले जायेगी पता
ना था
उनकी हाँ के बाद
सब मंज़ूर था
29-05-2011
953-160-05-11
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