Thursday, May 19, 2011

वो बुलबुल

वो बुलबुल निरंतर
घर के सामने वाले
पेड़ पर बैठती थी
घर में आते जाते
लोगों को देखती थी
एक दिन पेड़ से उतर
फुदकती हुयी
सामने बालकनी की
रेलिंग पर आ बैठी
इधर उधर देख
कमरे की खिड़की में
बैठ चहचहाने लगी
मुझे लगा कुछ कहना
चाहती
उसकी बात समझने
उसके पास गया
वो उड़ कर फिर
खिड़की पर जा बैठी
खिड़की के पास पहुंचा तो
बालकनी की रेलिंग पर
जा बैठी
वहां पहुंचा तो घर के
दरवाज़े पर जा पहुँची
नज़रें उठायी तो
मेरी पत्नी दरवाज़ा
खुलने के इंतज़ार में 
वहां खडी थी
घंटी की आवाज़
मुझे सुनायी नहीं दी
चिड़िया ने सुन ली
इंतज़ार का महत्त्व
समझा गयी
19-05-2011
893-100-05-11

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