घर शहर से
बाहर था
मैं घर में
बिलकुल अकेला था
घुप्प अंधेरी रात में
दरवाज़े पर खट खट हुयी
मुझे अन्दर आने दो की
आवाज़ आयी
खिड़की से
एक शख्श खडा दिखा
दिल ने कहा
कोई गुंडा लूटने की
नियत से आया होगा
सोच कर दरवाज़ा
नहीं खोला
सुबह नींद से जागा
खिड़की से देखा
घर से थोड़ी दूर
लोगों की भीड़ थी
चौकन्ना घर से निकला
नज़दीक जाकर देखा
वो शख्श ज़ख्मों से भरा
मरा पडा था
पता चला पिछली शाम
एक अबला की
इज्ज़त बचाने के लिए
गुंडों से लड़ा था
मन ग्लानि से भर गया
मेरे बहम ने एक बहादुर को
मार दिया
23-05-2011
909-116-05-11
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