Friday, May 27, 2011

मगर तुम्हें कैसे बताऊँ?

मन में
मेरे तुम बसी
आँखों में सूरत,
दिल में
मूरत तुम्हारी बसी
लबों पे नाम सिर्फ
तुम्हारा रहता
जुबां से नाम
सिर्फ तुम्हारा निकलता
जहन में ख्याल
सिर्फ तुम्हारा रहता
सारे शहर को पता
ख़्वाबों में
सिर्फ तुम्हें देखता
मगर
तुम्हें कैसे बताऊँ ?
दिन रात निरंतर
यही सोचता 
27-05-2011
943-150-05-11

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