गले मिल कर
रोने वाले
अब मिलने की रस्म
निभाते हैं
रकीबों से हँस हँस कर
मिलते हैं
जले पर नमक
छिड़कते हैं
करीब आकर भी
चुपचाप निकल जाते
दर्द-ऐ-दिल बढाते हैं
निरंतर गरूर में
बहकते हैं
मोहब्बत को खेल
समझते हैं
(रकीब=दुश्मन ,Enemy)
16-07-2011
1193-73-07-11
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