Saturday, July 16, 2011

अब मिलने की रस्म निभाते हैं

गले मिल कर
रोने वाले
अब मिलने की रस्म
निभाते हैं
रकीबों से हँस हँस कर
 मिलते हैं
जले पर नमक
छिड़कते हैं
करीब आकर भी
चुपचाप निकल जाते
दर्द-ऐ-दिल बढाते हैं
निरंतर गरूर में
बहकते हैं
मोहब्बत को खेल
समझते हैं
(रकीब=दुश्मन ,Enemy)
16-07-2011
1193-73-07-11

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