आखिरी बार मिली थी
अब रास्ते अलग अलग
कह कर विदा हुयी
ना अब मिलती कभी
ना बात कभी होती
मेरी तस्वीर ज़रूर
उसके कमरे के कौने में
पडी मेज़ पर रखी थी
निरंतर धूल खाती थी
कई दिन उस पर नज़र
नहीं पड़ती
जिस दिन नज़र पड़ती ,
मिनिट दो मिनिट
टकटकी लगा कर देखती
चेहरे की रंगत बदलती
रहती
क्या सोच रही थी ?
किसी से ना कहती
कपडे की झाडन से
धूल हटाती
सलीके से फिर मेज़ पर
सजाती
दो चार दिन यही दोहराती
फिर भूल जाती
शायद अब भी तय नहीं
कर सकी थी
मुझ से दूरी रखे या फिर
लौट जाए
मिलने की चाहत रखे या
भूल जाए
ख्यालों के भंवर में फँसी थी
ना तस्वीर फैंकती
ना सीने से लगा कर रखती
ना खुल कर हँस पाती
ना खुल कर रो पाती
दुविधा में जीती जाती
31-07-2011
1273-157-07-11
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