दर्द-ऐ-इश्क को
खुदा का फरमान
समझ
गले से लगा लिया
मोहब्बत को
बहता हुआ पानी
समझ लिया
जितना पी सका
पी लिया
जो बह गया उसे
उसे जाने दिया
अब निरंतर
रोना छोड़ दिया
गम में जीना
अब आदत बना लिया
काटी थी रातें जिसकी
याद में
उसे सपना समझ
भूल गया
22-07-2011
1214-94-07-11
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