ना जंतर ना मंतर
ना होता वह सुन्दर
जानवरों में वंडर
कभी इधर तो कभी उधर
उछल कूद में माहिर
कहते हैं उसको बन्दर
काले मुंह का लंगूर
कहलाता
पूंछ उसकी लम्बी
लाल मुंह के बन्दर
की पूंछ होती छोटी
गांधीजी के पास भी थे
तीन अद्भुत बन्दर
ना देखो, ना सुनो
ना कहो किसी से बुरा
सीख सब को देते
जन्म स्थान उनका
कहलाता पोरबंदर
जहाँ जहाज़ डाले लंगर
कहलाता बंदरगाह
जहाँ है पानी अथाह
कहते उसको बोरीबन्दर
सड़क का नाम घोडबंदर
जहाँ नहीं एक भी बन्दर
वह कहलाता बांद्रा
बन्दर का खेल
बहुत गज़ब का
इंसान इनका वंशज
रामायण में लिखा
हनुमानजी भी थे बन्दर
निरंतर करता विचार
क्यों करूँ में बन्दर बाट ?
जिसका हिस्सा उसको दूं
झंझट से मैं दूर रहूँ
बन्दर का नहीं है कोई सानी
नाचना उसको पसंद
बूढा कितना भी हो जाए
गुलाटी खाना नहीं छोड़ता
गाँव,शहर,जंगल,जंगल
हर जगह मिलता बन्दर
इस लिए कहते हैं
उसको नटखट मस्त कलंदर
27-07-2011
1241-121-07-11
( बाल हास्य कविता )
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