Monday, July 25, 2011

वो दर्द-ऐ-दिल से बेखबर थे

हम मोहब्बत के

दिए जलाते रहे

वो उन्हें बुझाते रहे

हम ख़त लिखते रहे

वो उन्हें फाड़ते रहे

हम निरंतर रातों

को जागते रहे

उन्हें

याद करते रहे

वो आराम से सोते रहे

हम राह तकते रहे

वो अनदेखा करते रहे

हम सर झुकाते रहे

वो गरूर में

सर उठा कर चलते रहे

हम दिल दे चुके थे

वो दर्द-ऐ-दिल से

बेखबर थे

24-07-2011

1225-105-07-11

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