जो रोज़ मिलते
ऊपर से खुश दिखते
अन्दर से बद्दुआ देते
मेरे अनजाने ब्लॉगर
दोस्त उनसे अच्छे
जिन्हें कभी देखा नहीं
जो कभी मिले नहीं
वो मेरा मैं उनका
होंसला बढाते
जो मैं लिखता
वो पढ़ते
जो वो लिखते,
मैं पढता
वो दाद देते ,
मैं भी दाद देता
उनसे मिलने की
इच्छा रखता
देखने को दिल चाहता
उनका भी सोच
ऐसा ही होगा
इस उम्मीद में निरंतर
लिखता रहता
31-07-2011
1274-158-07-11
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