तुम्हारे वो ख़त
सम्हाल कर रखे मैंने
जिनमें
चाहत के नग्मे लिखे
चाहत के नग्मे लिखे
हाल-ऐ-दिल बयाँ करा
तुमने
तुमने
ख़्वाबों के किस्से भरे
साथ मरने,
जीने के फलसफे लिखे
उनमें अक्स
तुम्हारा देखा मैंने
तुम्हारा देखा मैंने
उन्हें पढ़ना खुदा की
इबादत समझा
इबादत समझा
निरंतर
सीने से लगा कर रखा
सीने से लगा कर रखा
जाँ से भी ज्यादा
कद्र करी उनकी मैंने
कद्र करी उनकी मैंने
फिर क्यों रुस्वां हो गए
क्यों दिल से निकाला
मुझ को
मुझ को
कोई बहाना ना बनाना
खेल मोहब्बत का
खेला तुमने
खेला तुमने
नहीं बख्शेगा खुदा
तुमको
तुमको
उसे भी पसंद नहीं
चेहरे पर चेहरा
बेवफायी का सिला
अब वो ही देगा
तुमको
तुमको
12-07-2011
1171-55-07-11
12-07-2011
1171-55-07-11
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