उम्मीदों का दामन
तार तार हो गया
नाकामयाबी के छेदों से
भर गया
अब क्या रफू करेगा कोई ?
क्या दिलासा देगा कोई ?
कोई मिल भी जाए
क्या साथ निभाएगा कोई ?
यादों की चादर ओढ़े हूँ
उम्मीदें उस में
छुपा कर रखता हूँ
एक पैबंद लग भी जाए
दामन ठीक हो नहीं
सकता
अब उम्मीद करना
छोड़ दिया
क्यों उम्मीदें बर्बाद करूँ ?
अब चुपचाप रहता हूँ
निरंतर खून के घूँट
पीता हूँ
29-07-2011
1261-145 -07-11
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