जहाँ में खिले
इक ज़मीं पर
इक आसमाँ में
दोनों अक्स इक दूजे के
दिल सोच में फँसा
किसे देखूं ?,
किसे ना देखूं ?
दोनों टुकड़े दिल के मेरे
ना दिल तोड़ सकता
ना नाराज़ कर सकता
ख्यालों के
चौराहे पर खडा हूँ
निरंतर खुद से पूंछता हूँ
इसे देखूं या उसे देखूं ?
उनकी पूँछ लूं ?
28-07-2011
1258-142 -07-11
जहाँ में खिले
इक ज़मीं पर
इक आसमाँ में
दोनों अक्स इक दूजे के
दिल सोच में फँसा
किसे देखूं ,किसे ना देखूं
दोनों टुकड़े दिल के मेरे
ना दिल तोड़ सकता
ना नाराज़ कर सकता
ख्यालों के
चौराहे पर खडा हूँ
निरंतर खुद से पूंछता हूँ
इसे देखूं या उसे देखूं ?
उनकी पूँछ लूं ?
28-07-2011
1258-142 -07-11
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