मुलाक़ात
शानपतजी से हुयी
किसी को किसी की
सूरत नहीं भायी
मिलते ही दोनों में
ठन गयी
मन में एक दूसरे को
नीचा दिखाने की
होड़ मच गयी
शानपतजी ने
हँसमुखजी पर पहला
प्रहार किया
आपको देख कर
हँसी नहीं आती फिर
आपका नाम
हँसमुख क्यों रखा
हँसमुखजी ने
नहले का जवाब
दहले से दिया
पलट कर वार किया
आप जैसों की
सूरत देख कर हँसी
रुकती नहीं
जी तो रोने का करता है
मगर लाखों में एक हो
ऐसा चेहरा
आसानी से दिखता नहीं
आपको बुरा ना लगे
खूबसूरत होने का बहम
बरकरार रहे
आपको खुश करने के लिए
निरंतर हँसता हूँ
इसलिए हँसमुख
कहलाता हूँ
28-07-2011
1253-137 -07-11
No comments:
Post a Comment