Thursday, February 16, 2012

हमने ही रोने का कोई बहाना नहीं बनाया

हमने ही रोने का
कोई बहाना नहीं बनाया
जी भर के
अश्कों को बहने दिया
क्या होता
अगर सच को झुठलाते?
हमेशा की तरह कोई 
बहाना बनाते
मन ही मन
निरंतर घुटते रहते
हँसते हुए भी रोते से
दिखते
चेहरे से लोग हकीकत
जान  लेते
झूठे शक शुबहा पालते
हर जगह चर्चा करते
खुले आम मज़ाक
बनाते
ग़मों के बोझ को 
और बढाते
कल पता चलता
आज ही
पता चल जाने दो
यही सोच हम रोते रहे
मन को
हल्का करते रहे
खुले आम
अश्कों को बहाते रहे
16-02-2012
175-86-02-12

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