Saturday, July 2, 2011

भ्रात्र - प्रेम

पिता को 
समझ नहीं
आ रहा था
खुशी से हँसे या
दुःख में रोये
एक पुत्र इम्तहान में
अव्वल आया
दूसरा फेल हो गया
जिस की तरफ ध्यान
ज्यादा था
जो खुद का अपना था
वह असफल हो गया
जो गोद आया था
उसका अपना खून
ना था
वह सफल हो गया
ह्रदय व्यथित भी था
खुश भी था
एक को फिर से पढ़ना
पडेगा
निरंतर हीन भावना से
ग्रसित रहेगा
दूसरा अफसर बनेगा
भाइयों में मनभेद ना हो
उसके लिए क्या करे ?
सवाल से परेशान था
तभी गोद आया पुत्र
पिता के पास आकर
कहने लगा
आप की व्यथा समझता हूँ
भाई की असफलता
मेरी भी असफलता है
आज से पढ़ाने का
जिम्मा मेरा है
ना हीन भावना से
ग्रसित होने दूंगा
ना हिम्मत खोने दूंगा
उसकी सफलता में
मेरी भी सफलता है
02-07-2011
1122-06-07-11

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