आज फिर घर से
निकलने में देर हो गयी
बुखार और दर्द के कारण
नींद पूरी ना हुयी
मालकिन की डांट
खानी पड़ेगी
पेट के खातिर हर
तकलीफ सहनी होगी
खुद दसवी पास थी
चाहते हुए भी
आगे नहीं पढ़ सकी
बिटिया को पढ़ा लिखा कर
अफसर बनायेगी
उससे बर्तन नहीं मंजवायेगी
सोचते,सोचते अपनी धुन में
चली जा रही थी
पता नहीं चला
कब बस ने टक्कर मार दी
काफी देर सड़क पर पडी रही
किसी ने रहम की भीख दी
सरकारी अस्पताल पहुँची
आँख खुली तो पलंग पर
पडी थी
एक टांग कट गयी थी
बगल में नर्स खड़ी थी
घर में कौन कौन है ?,
क्या काम करती है?
कहाँ रहती है ?
सवालों की झडी लगा दी
जवाब देते देते थक गयी
नर्स के जाने के बाद
आँखों से आंसूं बहाने लगी
बेटी की याद सताने लगी
भूखी और परेशान होगी ,
अब कैसे उसकी देखभाल होगी ?
कैसे उसका पेट पालेगी ?
कैसे पढ़ायेगी लिखायेगी ?
भविष्य की चिंता सताने लगी
सब सोच कर छटपटाने लगी
सोचते सोचते सो गयी
आँख खुली तो नर्स
बेटी के साथ खड़ी थी
कहने लगी में अकेली हूँ
बूढ़ी अपाहिज और अंधी
माँ के साथ रहती हूँ
मेरी माँ भी बर्तन मांजती थी
उसकी भी टांग
बस की टक्कर से कटी थी
बहुत मुश्किल से
मेरी परवरिश करी
नहीं चाहती,तुम्हारी बेटी को
निरंतर ज़िल्लत सहनी पड़े
दाने दाने के लिए रोना पड़े
तुम मेरी माँ को सम्हालना
बेटी को पढ़ाना लिखाना
मैं तुम्हें सहारा दूंगी
अब से परिवार में हम
दो नहीं चार होंगे
तुम मौसी,तुम्हारी बेटी
मेरी बहन होगी
01-07-2011
1120-04-07-11
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