Wednesday, February 1, 2012

बड़ी अजीब रात थी

इक तरफ चाँद की ठंडक
दूसरी तरफ
उसके हुस्न की गर्मी
इक तरफ मेरी ख्वाईशें
दूसरी तरफ उसकी
 ना नुकर
रात यूँ ही बीत रही थी
ठंडी हवा भी कह रही थी
क्यों आगे न बढ़ रहे हो
कब तक शरमाओगे तुम
इसी ज़द्दोज़हद में रात
गुजर गयी
हसरतें अधूरी रह गयीं
ना वो खुश हुए
ना हम
01-02-2012
92-02-02-12

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