Thursday, February 9, 2012

क्यों होता है सब ?

मन उदास
ह्रदय व्यथित
इतना करा,इतना सहा
फिर भी
क्यों होता नहीं कोई खुश?
सारी इच्छाएं
सारे सपने ,सारे लक्ष्य
क्यों होते हैं सब ध्वस्त?
सारी प्रार्थनाएं ,पूजा पाठ
क्यों
सब होते हैं व्यर्थ ?
क्यों सुनता नहीं इश्वर?
कब तक रोना है ?
खुश दिखना है
क्यों बताता नहीं कोई ?
सारी हिम्मत,सारे होंसले
क्यों लेते नहीं विराम ?
निरंतर चलते रहने का
करते रहने का
क्यों जाता नहीं विचार?
क्यों कम नहीं होती ?
जीने की इच्छा
कम नहीं होता
मोह अपनों का
छूटता नहीं संसार
क्यों मानता नहीं ये मन?
ना मिला जब उत्तर
किसी को
कैसे मिलेगा मुझको?
क्यों समझाता नहीं कोई?
हंसू या रोऊँ
या फिर चुपचाप सहूँ
जब ऐसे ही जीना है
ऐसे ही जाना है
समझ नहीं आता
फिर भी
क्यों व्यक्त करता हूँ ?
कुंठा अपनी
क्यों लिखता हूँ सब ?
कब,कैसे और किससे
पता चलेगा ?
क्यों होता है सब ?
09-02-2012
128—39-02-12