इस झूठ
प्रपंच की दुनिया में
कोई खुश नहीं किसी से
हर मन में प्रश्न
हर ह्रदय व्यथित
दूसरों के
कार्यकलापों से
सुनना नहीं चाहता
सच कहना चाहता
मन के विचारों को
चुप हो जाता
कह ना पाता
कहीं हो ना जाए रुष्ट
यह सोच कर
करता है प्रपंच
कहता है वही बात
जो उसके मन को भाये
चेहरे से मुस्काराता
ह्रदय में आग जगाता
घूम रहा हर चेहरा
चेहरे पर चेहरा चढ़ाए
काट रहा है जीवन
मन में पीड़ा बसाए
हर मन में प्रश्न
हर ह्रदय व्यथित
कोई खुश नहीं
किसी से
09-02-2012
130-41-02-12
130-41-02-12
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