Thursday, July 7, 2011

लाचारी

कल रात फिर
कोई सौ का नोट
दे गया
बेटी को साथ
ले गया
अंधा,अपाहिज था
खून खौलता रहा
पेट के खातिर
चुप रहा
रात भर रोता रहा
जान देना चाहता था
बेटी के खातिर
खामोशी से सहता
रहता
उसकी गरीबी
और लाचारी का
मज़ाक उड़ता रहता
बेटी निरंतर बाप के
खातिर
शरीर बेचती रहती
हवस का शिकार
होती रहती
मर मर कर
जीती रहती

जीने की तमन्ना
दोनों को मरने
नहीं देती  
06-07-2011
1146-30-07-11

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