Thursday, July 7, 2011

उम्मीद और समाधान (लघु कथा )

आज फिर नीम के पेड़ के नीचे,मूंज की खाट पर लेटे लेटे,वो सोच रहा था,गर्मी बहुत है,घर में बिजली होती तो आराम से पंखे के नीचे सोता,पर क्या करे? इतने पैसे कभी नहीं बचे कि बिजली लगवा सके.

इस बार फसल अच्छी होगी तो बिजली ज़रूर लगवायेगा ,गाँव में अकेला था,जिस के घर में बिजली नहीं थी .सब उसे बार बार बिजली लगवाने के लिए टोकते रहते थे,वो किसी तरह उन्हें टालता रहता ,उन्हें कैसे बताता ?घर का खर्च मुश्किल से चलता है ,इज्ज़त के खातिर झूठे बहाने भी बनाने पड़ते.पर क्या करे ?डेढ़ बीघा ज़मीन के टुकड़े में इतना पैदा ही नहीं होता,कि बिजली का बिल भर सके, आखिर लाईट लगवाने के अलावा ,बल्ब,पंखे में भी खरीदने पड़ते हैं ,उसके भी तो पैसे लगते हैं.बरस हो गए उम्मीद करते करते पर किसी भी साल फसल बहुत अच्छी नहीं हुयी ,फिर बच्चे होने के बाद खर्च भी तो बढ़ा है.

मक्खियाँ उड़ाते उड़ाते.विचारों का आना जाना चलता रहा ,नींद की झपकी आती, कोई मक्खी मुंह पर  बैठती तो नींद उड़ जाती जहां मक्खी बैठी थी ,वहाँ खुजाता ,मक्खी बैठी हो तो मारने की कोशिश करता ,एक चपत गाल पर लगाता ,मक्खी तो नहीं मरती ,चपत खुद को लगती ,एक गाली मक्खी को देता ,करवट बदलता फिर खुद से कहता  बिजली से ज्यादा ज़रूरी मक्खी भगाना है . फिर से विचारों का प्रवाह होने लगता ,बिजली का ख्याल दिमाग में आता,अचानक खुद से कहने लगता ,इतने बरस बिना बिजली के काटे ,अब बिजली नहीं है तो कौन सा पहाड़ टूट रहा है ? बिजली नहीं होगी तो पैसे बचेंगे किसी और काम आयेंगे.बेकार में  निरंतर बिजली के बारे में सोच कर दिमाग खराब करता हूँ, इज्ज़त के लिए झूठ भी बोलना पड़ता है.पहले भी तो गाँव में सब बिना बिजली के रहते थे.ये उम्मीद भी क्या चीज़ है ,उम्मीद में आधी से ज्यादा ज़िन्दगी कट गयी ,पर कभी पूरी नहीं होती,नित नयी जागती रहती,उम्मीद नहीं होती तो इंसान के लिए जीना मुश्किल हो जाता.सोचते सोचते आखिर बिना बिजली के उसको नींद आ ही गयी और वो गहरी नींद में सो गया.

समस्याओं से लड़ना,विचारों से समाधान निकालना,जीवन गरीबी में गुजारना उसकी आदत बन गया था, पर खुद ही विचारों से समाधान ढूंढ कर,संतुष्ट हो,गहरी नींद में सोता ज़रूर था.

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