मेरी कुछ कवितायें
मेरी डायरी में दबी पडी हैं
ठीक वैसे ही जैसे अपने कई
ज़मीन में दफनाये पड़े हैं
कुछ कविताओं की
कुछ लाइनें याद हैं
कुछ के कुछ शब्द
कुछ के केवल शीर्षक
बहुत जोर लगाता हूँ
तो कुछ और याद आने
लगती हैं
कुछ कवितायें ऐसी भी हैं
जो ह्रदय से निकली थी
बड़े मन से लिखी गयीं थी
याद ही नहीं आती
निरंतर सोचता हूँ
ऐसा क्यों होता है ?...
क्यूँ भूल जाता हूँ ...
क्या इसलिए कि याद
करना नहीं चाहता ?
या मैं बदल गया हूँ
जो कभी ह्रदय का
हिस्सा होता था
अब याद भी नहीं आता
इतनी आसानी से
मनुष्य कैसे भूल जाता
ठीक ठीक उत्तर
फिर भी मिलता नहीं
तो अपने से कह देता हूँ
जो आज है
वो ही तो याद रहेगा
जो हो चुका या जा चुका
उसे कोई क्यों याद करेगा ?
किसे याद रहता
किसने किसके लिए
क्या करा ?
वैसे भी उगते सूरज को
सब नमस्कार करते हैं
जो चला गया
उसे कौन याद
करता है ?
02-02-2012
100-10-02-12
1 comment:
सही कहा!
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