तुम्हारी अदा लुभाती
या ख़ूबसूरती हमें मारती
तुम्हारा अंदाज़ कातिल
या तीर-ऐ-निगाह काम
करती
हम मतलब नहीं
कौन सी बात तुम्हारी
निरंतर
जान हमारी लेती
हमें तो सिर्फ इतना पता
जान हमारी बस तुम में
अटकती
दिन रात ख्यालों में
तुम ही रहती
08-07-2011
1151-35-07-11
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