Thursday, February 9, 2012

सोचा आज बता ही दूं


सोचा
आज बता ही दूं
कैसे कवी,लेखक बना
मन सवालों से घिरा था
खुल कर
कहना चाह रहा था
समझ नहीं आ रहा था
मन की बात कैसे कहूं
जुबां से कहूंगा तो
दुनिया को
बर्दाश्त नहीं होगा
मुझ पर हर तरफ से
हमला होगा
मुंह पर ताला लगाना
मुझे नहीं भाएगा
ख्याल आया
क्यूं ना लिख कर कह दू
अपनी भड़ास निकाल दूं
मन को शांती दे दूं
तब से कलम पकड़ ली
निरंतर
बेबाक लिखने लगा
मन की
बात कहने लगा
09-02-2012
133-44-02-12  

No comments: