संसार में आने को
बहुत मचल रहा था
परमात्मा से देखा ना गया
उसे संसार में अतिथी
बना कर भेज दिया
जाने से पहले उसे
समझाया
सबसे मिल कर रहना
ना किसी से झगडा करना
ना ह्रदय में बैर रखना
जब तक रहना
प्यार मोहब्बत से रहना
घ्रणा से दूर रहना
अगर अच्छे अतिथी
बन कर रहोगे
स्वर्ग में जगह पाओगे
दुनिया में आते ही
चका चौंध में सारा पाठ
भूल गया
संसार को अपनी
मिलकियत समझने लगा
होड़ के भंवर में फंस गया
निरंतर
आगे बढ़ने की चाह में
बैर और घ्रणा से जीने लगा
जीवन भर उलझता रहा
ना उसकी इच्छाएं पूरी हुयी
ना पाने की इच्छा कम हुयी
चैन,संतुष्टी कभी ना मिली
दुनिया से जाने का
समय आया तो
परमात्मा याद आने लगा
नरक का डर सताने लगा
परमात्मा से
क्षमा की आशा में
निरंतर मंदिर मस्जिद के
चक्कर लगाते लगाते
एक दिन संसार से
असंतुष्ट विदा हो गया
कभी किसी ने सम्मान से
उसका नाम नहीं लिया
09-02-2012
132-43-02-12
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