Thursday, February 9, 2012

निश्छल प्रेम

नदी का
निर्मल शीतल जल
समुद्र के प्रेम में मग्न
अविरल बहते हुए
समुद्र से मिलने
चल देता
कोई पथ से रोके
अवरोधक बने
अपने
पथ से डिगता नहीं
निरंतर नया पथ
बनाता
सहनशीलता संजोये
बिना व्यथित हुए
अपने लक्ष्य की ओर
अग्रसर होता रहता
समुद्र की गोद में
समा कर
लक्ष्य प्राप्त करता
अपने
निश्छल प्रेम को
पा लेता
09-02-2012
134-45-02-12  

1 comment:

***Punam*** said...

जीवन में हर एक का लक्ष्य निश्चित है....
वहां पहुंचना कब और कैसे है....
ये नहीं पता....!