वही नज़ारा
वही मौसम
वही नदी का किनारा
किनारे पर लगे
पेड़ों की झुकी डालियाँ
कल कल बहते
पानी को चूम रही है
वो अब साथ नहीं
पर उसकी खुशबू
हवाओं में बाकी है
मछलियाँ अब भी
पानी से उचक कर
उसके तबस्सुम की
मुन्तजिर हैं
उसके दीदार को
तरसती हैं
05-02-2012
107-17-02-12
दीदार=देखना
मुन्तजिर=उम्मीद में इंतज़ार करना
तबस्सुम – मुस्कुराहट
2 comments:
वो अब साथ नहीं
पर उसकी खुशबू
हवाओं में बाकी है....bhawnaao se abhibhoot.....
वाह बहुत खूब जी
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