Sunday, February 5, 2012

यादें



वही नज़ारा
वही मौसम
वही नदी का किनारा
किनारे पर लगे
पेड़ों की झुकी डालियाँ
कल कल बहते
पानी को चूम रही है
वो अब साथ नहीं
पर उसकी खुशबू 
हवाओं में बाकी है
मछलियाँ अब भी
पानी से उचक कर
उसके तबस्सुम की
मुन्तजिर हैं
उसके दीदार को
तरसती हैं
05-02-2012
107-17-02-12
दीदार=देखना
मुन्तजिर=उम्मीद में इंतज़ार करना
तबस्सुम मुस्कुराहट

2 comments:

induravisinghj said...

वो अब साथ नहीं
पर उसकी खुशबू
हवाओं में बाकी है....bhawnaao se abhibhoot.....

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत खूब जी