ओस
ओस
की बूँद जब तक
पिघलती नहीं
चमकती रहती
जीने का अर्थ
समझाती रहती
हम अब
"मैं"में
सिमट गए हैं
दिल-ओ-दीमाग के
दरवाज़े
बंद हो गए हैं
रिश्वत
रिश्वत देना पाप है
लेना मजबूरी
वक़्त के साथ
चलना ज़रूरी है
नींद
नींद नहीं होती
तो कोई सोता नहीं
रातों को जागता नहीं
व्यस्तता
महीनों हो गए
पड़ोसी से मिले हुए
शहर के
लोगों से मिलने में
व्यस्त थे
जीवन- म्रत्यु
म्रत्यु क्या है ?
जीवन का अंत
जीवन क्या है ?
म्रत्यु का इंतज़ार
18-11-2011
1797-68-11-11
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