पैगाम
भेजते घर आयेंगे
इंतज़ार करता
कोई दरवाज़ा खटखटाता
खोलता तो
कोई नज़र ना आता
लिफ़ाफ़े पर
मेरा नाम लिखा होता
खोलता तो खाली
कागज़ निकलता
खुद ही हँस कर
बताते थे
उन्हें शरारत में
मज़ा आता
शरारत का
उनका अंदाज़ बड़ा
निराला था
निरंतर मन को
लुभाता था
मेरी चाहत को
बढाता था
09-11-2011
1762-30-11-11
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