Thursday, November 10, 2011

शरारत


 पैगाम
भेजते घर आयेंगे
इंतज़ार करता
कोई दरवाज़ा खटखटाता
खोलता तो
कोई नज़र ना आता
लिफ़ाफ़े पर
मेरा नाम लिखा होता 
खोलता तो खाली
कागज़ निकलता 
खुद ही हँस कर
बताते थे
उन्हें शरारत में
मज़ा आता
शरारत का
उनका अंदाज़ बड़ा
निराला था
निरंतर मन को
लुभाता था
मेरी चाहत को
बढाता था
09-11-2011
1762-30-11-11

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