Thursday, November 3, 2011

मैं फिर सोच में डूब गया........


अलसाया सा
मूढे पर बैठा था
सोच में डूबा था
चिड़िया की चहचाहट
ने ध्यान भंग किया
नज़रें उठायी
देखा तो रोशनदान पर
चिड़िया तन्मयता से
घोंसला बना रही थी
उसके सीधेपन  पर
ह्रदय में दुःख होने लगा
लोगों ने निरंतर
बड़े पेड़ों 
उनपर लगने वाले
घोंसलों को नहीं छोड़ा
अनगिनत पक्षियों को
बेघर किया
रोशनदान में लगे घोंसले
को कौन छोड़ेगा?
एक दिन इसे भी बेघर
होना पडेगा
अस्तित्व के लिए
लड़ना पडेगा 
मैं फिर सोच में
डूब गया........    
02-11-2011
1741-10-11-11

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