उन्होंने अपना हाथ
मेरी तरफ बढाया
मैं सोच में पड़ गया
थामूं या ना थामूं
पहले भी
हाथ जिसका थामा
मंझधार में छोड़ कर
चला गया
हाँ ना करते करते
डरते डरते भी
उनका हाथ थाम लिया
फिर वही हुआ
जो होता आया था
उन्होंने भी वही किया
मुझे मंझधार में छोड़ दिया
बदकिस्मती का एक और
अफ़साना मेरी ज़िन्दगी के
पन्नों में जुड़ गया
अब खौफज़दा हूँ
यकीन से कोसों दूर हूँ
लोग निरंतर
मुझे डराने के लिए
बस हाथ आगे कर देते हैं
खुद खुल कर हँसते हैं
24-11-2011
1814-85-11-11
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