Sunday, November 20, 2011

संतुष्टी से जीवन जीता जाता


सर्दी,गर्मी या हो
वर्षा का मौसम

एक तारा लिए
 एक साधू निरंतर

मेरे घर पर आता

एकाग्रचित्त हो 
मन -लगन और सहज 
भाव से

लोक गीत सुना कर

मंत्रमुग्ध करता
कोई दान दक्षिणा दे दे
सहर्ष स्वीकार कर लेता
नहीं दे तो मुंह नहीं

बिचकाता

ना पाने की इच्छा
ना कुछ खोने का भय
बहते पानी सा बहता

रहता 

सबकी खुशी में

अपनी खुशी समझता

कुछ नहीं पास उसके
फिर भी संतुष्टी से

 जीवन जीता जाता
19-11-2011
1801-72-11-11

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